Sunday, May 15, 2011

भ्रष्टाचार बंद करो

स्रोत- /sofaga
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साक्षरता दिवस

स्रोत- /zeride

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भगवान नृसिंह विष्णु अवतार

हिन्दू धर्म पंचाग का वैशाख माह विष्णु भक्ति का पुण्य काल माना गया है। भगवान विष्णु का स्वरूप शांत, सौम्य, सत्वगुणी, आनंदमयी माना गया है। किंतु विष्णु अवतार से जुडें पौराणिक प्रसंग साफ करते हैं कि धर्म रक्षा और धर्म आचरण की सीख देने के लिए लिए युग और काल के मुताबिक भगवान विष्णु अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट हुए।

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी (16 मई) भी भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नृसिंह के प्राकट्य की पुण्य घड़ी मानी जाती है। यहां हम भगवान नृसिंह की कथा में छुपे उन छुपे संदेशों का बता रहे हैं, जो जीवन में सफलता की चाहत रखने वाले हर इंसान के लिए सटीक उपाय भी साबित हो सकते हैं -

नृसिंह अवतार की कथा है कि धर्म और ईश्वर विरोधी हिरण्यकशिपु द्वारा जब अपने ही विष्णु भक्त पुत्र को ईश्वर भक्ति से रोकने के लिए घोर अत्याचार किए गए, तब धर्म और भक्त की रक्षा के लिए भगवान विष्णु, नृसिंह यानी आधे सिंह और आधे मानव शरीर के असाधारण व उग्र स्वरुप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का अंत कर दिया।

इस नृसिंह कथा में तीन प्रमुख पात्र हैं - हिरण्यकशिपु, भक्त प्रह्लाद और भगवान नृसिंह। जिनसे जीवन को सही दिशा में ले जाने और लक्ष्य पाने के 3 गुर सीखे जा सकते हैं -

हिरण्यकशिपु - यह सबल, सक्षम होकर भी दंभ और अहंकार का प्रतीक है।  घमण्ड ही सभी बुराईयों की जड़ माना गया है। जिससे कर्म, विचार और व्यवहार भी बदतर हो जाते हैं। संकेत है कि अगर आप जीवन को बेहतर और सफल बनाना है तो अहं को छोड़ सहज, सरल बन बडप्पन के साथ जीना सीखें।

भक्त प्रह्लाद - प्रह्लाद भक्ति, समर्पण, आत्मविश्वास और पुरुषार्थ का प्रतीक। संकेत है कि मकसद को पाने के लिए भक्ति की तरह ही मनोयोग जरूरी है। तमाम मुश्किल हालातों के बाद भी भक्त  प्रह्लाद की तरह पूरे आत्मविश्वास और जज्बे  के साथ लक्ष्य को पाने के लिए कटिबद्ध रहें। तभी भगवान नृसिंह कृपा की भांति सफलता की ऊंचाईयों और लक्ष्य को पाया जा सकता है।

भगवान नृसिंह - भगवान नृसिंह स्वरूप यही सिखाता है कि तन, मन और कर्म से हिरण्युकशिपु रूपी बुराईयों और कमजोरियों को निकालकर कर भक्त प्रह्लाद की तरह निडर बन जीवन को सफल बनाने के लिए अच्छाई की राह न छोड़े। बल्कि गुणी बन, मजबूत इच्छाशक्ति और भरोसे के साथ आगे बढते रहें। यहीं नहीं नृसिंह के असाधारण स्वरूप की तरह ही असाधारण कोशिशों से नामुमकिन लक्ष्य भी पाने को दृढ़ संकल्पित रहें।

Monday, May 9, 2011

मदर्स डे

 आज मदर्स डे है और दुनियाभर में लोग इस दिन को मना रहे हैं। वैसे तो कोई दिन ऐसा नहीं है, जो मां के लिए ना हो। लेकिन आज का दिन कुछ ख़ास है।

मां, महज़ एक शब्द नहीं है,प्यार और समर्पण का पूरा महाकाव्य है। एक ऐसा महाकाव्य जिसमें हर वह चीज़ है, जो मां को सबसे महान बनाता है। मां वह है, जिससे जीवन में हमारा पहला नाता बनता है। जन्म से पहले से ही हम उसे जानते हैं, वह जो ममतामयी है, त्यागी है, उदार है, सरल है, वह मां है। मां सौम्य है, साहसी है, करुणामयी है और विनम्र भी है। हम जो किसी से नहीं कह सकते उसे बिना कहे भी समझती है मां। हमारी विपदा को हमसे पहले भांपती है मां। मां शालीन है, संतोषी है, भावुक है और धैर्यवान है। हमें जीवन का पहला शब्द देती है मां। हमें जीवनभर की सीख देती है मां। मां हर जगह है। हमारे रास्तों से पहले है मां, रास्तों के पीछे भी खड़ी है मां। मां जो विधाता की सबसे बड़ी वरदान है। मां जो हर किसी का अरमान है। ऐसी मां को शत शत नमन।


हर रोज हजारों-लाखों बेटियां गर्भ में ही मार दी जाती हैं। कैसे इन्हें बचाया जाए इसे लेकर तमाम कोशिशें भी जारी हैं।
सब जिदें उसकी मैं पूरी करूं,हर बात सुनूं
एक बच्चे की तरह से उसे हंसता देंखू                परवीन शाकिर    
अगर धरती पर कहीं जन्नत है, तो वह कश्मीर में नहीं, मां के कदमों तले है। मां और संतान का रिश्ता होता ही ऐसा है, जैसे कड़क धूप में मिल जाए किसी पेड़ की छाँव।










''बच्चों के साथ ज्यादा सख्ती नहीं बरतनी चाहिए। ऐसा करने से या तो आप टूट जाएंगी या आपके बच्चे। मुझे लगता है कि पैरेट्स और बच्चों का रिश्ता भी दूसरे रिश्तों की तरह होता है। इसमें दोनों पक्षों को आजादी मिलनी चाहिए। एक तरफ से दबाव बढ़ने से रिश्तों में तनाव आने लगता है। यदि आप चाहते है कि बच्चे आपकी बात सुनें तो आपको भी उनकी बात सुननी चाहिए। अपनी बेटियों के साथ मैंने यही नियम अपनाए।''  मैं उन्हे उनकी जिंदगी इंज्वाय करने देती हूं। आम तौर पर मैं उन्हे नहीं बताती कि क्या करना है और क्या नहीं। वे अपने दोस्तों के घर जाती है, पार्टी करती है, इसी के साथ वे अपनी सीमाएं भी अच्छी तरह से जानती है।'' मैं  बहुत सख्त थी, पर इससे मेरा ही तनाव बढ़ जाता था। फिर मैंने उन्हें  टोकना छोड़ दिया। उसके अपने ही नियम बहुत कड़े है। यही नियम उन्हें अनुशासन सिखाते है। वे  बहुत ही अनुशासन प्रियहैं  और हर काम अपनी सोच से करती हैं।''

कैसे बच्चों को बताऊँ रास्तों के पेंचो-ख़म
जिन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया     वसीम बरेलवी


एक एहसास का नाम है ना मां..
 शायर मुनव्वर राणा का एक शेर है, मां बैठे तकती थी जहां से मेरा रास्ता..मिट्टी हटाते ही वहां खजाने निकल आए..मां वास्तव में ऐसे ही एक एहसास का नाम है जो बिना कोई उम्मीद बांधे नि:स्वार्थ भाव से संतान को जन्म देती है, उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाने में मदद करती है और उसकी खातिर अपना सब कुछ बलिदान कर देती है। मां को शब्दों से किसी परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता बल्कि केवल महसूस किया जा सकता है।



शादी के बाद अमूमन बेटी अपनी पारिवारिक व्यस्तता के कारण मां को समुचित वक्त नहीं दे पातीं, जबकि प्रख्यात अभिनेत्री शबाना आजमी विवाह उपरांत पारिवारिक, व्यावसायिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों का निवर्हन करते हुए आज भी अपनी मां शौकत आजमी के बेहद करीब हैं। वह मुंबई में मां के साथ एक छत के नीचे रहती हैं।
 वेदव्यास ने कहा था-नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:। नास्ति मातृसमं त्राणं. नास्ति मातृसमा प्रिया।। अर्थात् माता के तुल्य कोई छाया नहीं है, माता के तुल्य कोई सहारा नहीं है। माता के सदृश कोई रक्षक नहीं तथा माता के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं है। संतति निर्माण में माता की भूमिका पिता से हजार गुणा अधिक है। माता के रूप में नारी अम्बा है, संतान निर्मात्री है, दया है, क्षमा है, कल्याणी है, मां जैसा त्याग ईश्वरीय सत्ता के अतिरिक्त कोई और नहीं कर सकता। मां सर्वव्यापक सत्ता की प्रतिमूर्ति है।


भारतीय जन-जीवन में मातृरूपा नारी को सर्वोच्च प्रतिष्ठा इसी से स्पष्ट है कि यहां का हर आस्तिक मनुष्य देवाधिदेव को अपना सर्वस्व मानते हुए सर्वप्रथम उनकी वंदना माता रूप में इस प्रकार करता है-त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्व मम देव देव:।। इस शब्द का उच्चारण करते ही हृदय आनंद से गदगद हो जाता है। माता की महिमा अवर्णनीय है। मां की सेवा से पुरुष समाज कभी उऋण नहीं हो सकता। मां का प्रेम निस्वार्थ होता है। ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ, अनुपम महान कृति जो वंदनीय है, पूज्यनीय है, मां को शत्-शत् नमन्।


मां के संदर्भ में कुछ लिखने  के पूर्व मेरी आंखें नम हो गई हैं, दिल भर आया है। शब्द नहीं सूझ रहे हैं, क्योंकि मैंने मां के व्यक्तित्व में उस वैराट्य का दर्शन किया है, जो समष्टि का सृजन करता है। वह त्याग की मूर्ति है, तपस्या की प्रतिमूर्ति है और क्या नहीं है? मैंने अपनी मां के चरणों में संपूर्ण मानवता को देखा है। आज मैं जो भी हूं, उनके चरणों के आशीर्वाद का ही प्रतिफल है। मातृ दिवस के इस पुनीत अवसर पर मैं समस्त माताओं को नमन करता हूं और पुत्रों से यह आग्रह करता हूं कि 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि' के भाव को सदा जीवंत रखे। किसी ने कहा है कि अपनी मां के चरणों के नीचे समस्त विश्व को देखता हूं। उसी भाव के तहत आज का दिवस मातृ शक्ति के नमन को समर्पित करता हूं। 



आज ८ मई को बीनू का फोन आया।उसने पूछा तुम्हें क्या चाहिए ।मैं समझ गयी की आज मां का दिन है।मैं जानती थी की बच्चियां याद रक्खेगी क्योकि उन्हें मां की याद हर दिन रहती है,एक दिन नहीं।

जिस देश में मां मरने के बाद भी पूजी जाती है उस देश में एक दिन का कोइ बिशेष महत्व नहीं है,लेकिन उस दिन का महत्व बढ़ जाता है जब कोइ बच्चा अपनी मां से पूछता है की आज तुम्हारा दिन है तुम्हें क्या चाहिए।
मां वह शब्द है,जो पृथ्वी की तरह समय-समय पर कठोर और पानी पड़ने पर मुलायम होती है.जिस तरह पृथ्वी अपने सीने में अनेंक अच्छे-बुरे को समेट कर रखती है ,उसी प्रकार मां भी अपने अच्छे -बुरे बच्चों को संजों कर रखना चाहती है.और रखती भी है।सुधारने के लिए कठोर,दुलारने के लिए नर्म स्वभाव अपनाती है।
बच्चे पौध तो मां माली होती है।मैंने  मां होने पर मां की अनुभूति को जाना,समझा.कई कठिनाईयों से जूझते हुए भी मां अपने बच्चों को सीने से लगाए हुए रहती है।
मां का एक आशीर्वाद हजारों देवताओं  के आशीर्वाद से बढ़ कर है,इसलिए एक नहीं हर दिन मां का है।