Monday, June 13, 2011

चार धाम यात्रा - यमुनोत्री ,गंगोत्री,केदारनाथ और बद्रीनाथ

  हजरत निजामुद्दीन दिल्ली से चार धाम  के लिए  यात्रा का शुभारम्भ। .लगभग २००० कि०मी० का चक्रमण
 ( आने-जाने का )जिसमें से १४०० कि०मी० पर्वतीय मार्ग जो काफी खराब व डरावना था। .एकतरफ गहरी खाईं तो दूसरी तरफ  पर्वत  व उसके बड़े-बड़े पत्थर के टुकडे। .पहला पडाव हरिद्वार जिसे चार धाम का प्रवेश मार्ग भी कहते  हैं। .  यमुना पुल से यमुनोत्री तक का मार्ग बीच-बीच में भयावह खतरनाक और डरावना है। ऐसे उबड़-खाबड़ रास्ते में गाड़ी पर सवार होकर मौत को निमंत्रण देना है। अगलाड़ पुल के समीप मार्ग क्षतिग्रस्त है। पुस्ते और दीवारें टूटी हुई हैं।मेक माई ट्रिप कंपनी द्वारा अनेक गलत दावों व  खोखले वादों के साथ यात्रा प्रारम्भ करवाई .दिल्ली से मात्र १६ कि० मी० पर मिनी बस का ए० सी० बेल्ट टूट गया ,५ घंटे धूप में बस खडी कर मार डाला .एक महिला यात्री तो उल्टी व डायरिया की शिकार हो गयीं.या तो बस बदल सकता था या किसी रेस्टोरेंट में बैठाकर बस ठीक करा सकता था.न कोई गाईड था न कंपनी का कोई आदमी फोन उठाता था.आरक्षित सभी होटल हम लोंगो के साथ दूसरे दर्जे का ब्यवहार करते थे.सर्वसुलभ ,मान्य व देय चादर,तौलिये  ,साबुन इत्यादि माँगने पर भी साफ़-सुथरें नहीं मिलते थे. बहाना तो कुछ भी बनाया जा सकता है जैसे मौसम के कारण चादर ,तौलिया गीला  है.मेक माई ट्रिप कंपनी ने हम लोंगो को बंधक बना कर भगवान भरोसे छोड़ दिया था .न कोई गाइड था न उस कम्पनी का कोई फोन उठाता था.केदार नाथ में सुनील लाज ने यह कह दिया की आप लोंगों की बुकिंग कैंसिल है और आप सभी सेवा जो चाहतें है उसका भुगतान करें। .करना ही पडा। . इसी तरह लक्ष्मी सदन हरिद्वार  में अंतिम दिन कहा गया की आपकी यात्रा में ११ लंच थे जो पूर्ण हो चुके हैं। आगे आपको खुद खर्च  वहन  करना है.जो एकदम गलत और डपोर शंखी व एकतरफा घोषणा थी। .इन कंपनी और होटलों की कार्य शैली की खुद बयान करने के लिए काफी है.किसी भी होटल में कर्मचारी अपने उचित ड्रेस में नहीं था ,जिससे किसी भी सेवा हेतु कोई इनको कुछ न कह सके.

हरिद्वार का होटल 

होटल के कमरे में आराम  करते हुए 

वाहन जिससे यात्रा की गयी 

हरिद्वार में शुबह ५ बजे गंगा स्नान 

हरिद्वार में शुबह ५ बजे गंगा स्नान 

पातन्जली योगपीठ का द्वार 

यात्रा में जाम तथा एकल मार्ग में बाहन से बाहर निकल प्राकृतिक आनंद लेते हुए 

नदी के साथ-साथ उसकी कल-कल की आवाज के साथ यात्रा का आनंद 
महान पर्वत व बौना आदमी 

पर्वतीय रोड की दशा 
मसूरी से यमुना पुल तक तो जैसे-तैसे पहुंचा जा सकता है , परन्तु यमुना पुल से यमुनोत्री तक का मार्ग बीच-बीच में भयावह खतरनाक और डरावना है।रात की ८बज रहे थे ,मेरे सामने ही ४ कार  रोड पर अपनी कार को बैक करने लगे . कुछ देर के लिए जाम की हालत हो गयी. उतर कर मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की आगे का मार्ग जाने लायक नहीं है. दूर-दूर तक कोई पुलिस वाला नहीं जिससे सही मार्ग दर्शन हो सके.एक आल्टो कार आगे जाना प्रारम्भ की उसके पीछे एनी बाहन जाने लगे . मेरे पास भी कोई अन्य विकल्प नहीं था .मेरा होटल अतिथि निवास जानकी चट्टी था और मेक माई ट्रिप कंपनी ने हम लोंगो को बंधक बना कर भगवान भरोसे छोड़ दिया था .न कोई गाइड था न उस कम्पनी का कोई फोन उठाता था.सचमुच  ऐसे भयानक  उबड़-खाबड़ रास्ते में गाड़ी पर सवार होकर मौत को निमंत्रण देनाथा। अगलाड़ पुल के समीप मार्ग क्षतिग्रस्त था। पुस्ते और दीवारें टूटी हुई थीं ।वैसे तो सम्पूर्ण यमुना घाटी में सड़कों की स्थिति अभी वाहन चलाने लायक नहीं है। यमुना पुल से नैनबाग के बीच कई जगह रास्ता टूटा हुआ था। वाहन अपनी जान हथेली में रखकर लोगों को ढोता जा रहा था।अलगाड़ पुल समेत खरसोन क्यारी के समीप सड़कें इतनी क्षतिग्रस्त हैं कि इससे वाहनों को भी नुकसान हो रहा है।यह सम्पूर्ण क्षेत्र राष्ट्रीय राज मार्ग नं. 923 के अन्तर्गत आता है जो कि केन्द्र द्वारा संचालित है। यह सम्पूर्ण सड़क फिलहाल बड़कोट डिवीजन के अन्तर्गत आती है। राष्ट्रीय राज मार्ग होने के बावजूद यह मार्ग सरकार व अफसरों की लापरवाही का शिकार बना हुआ है।
पुलिस के दावे जो हकीकत से कोसों दूर थे 
जानकी चट्टीका होटल अतिथि निवास जहां से यमुनोत्री की चढ़ाई शुरू की जाती है.हरिद्वार से लगभग २१५ कि० मी० .यहाँ से ६ कि० मी० पैदल,या डोली या खच्चर या पिट्ठू से जाना पड़ता है
यमुना को सूर्यपुत्री भी कहते हैं तथा यम सहोदर भ्राता है जो सूर्य-पत्नी छाया से पैदा हैं .यमुना की पूजा यम-संत्रास से भी मुक्ति दिलाती  है.यमुना का एक नाम कालिंदी भी जो कालिंद पर्वत से उद्गम होने के कारण पडा है.

जानकी चट्टीमें केवल दो होटल वे भी अच्छे  नहीं 
होटल से पर्वत का नजारा 
यमुनोत्री

यमुनोत्री मंदिर

मंदिर 
यमुनोत्री धाम का 
 यमुनोत्री मंदिर 
गंगोत्री धाम जाने का मुख्य मार्ग 
गंगोत्री में गंगा व उसके घाट
गंगोत्री का अर्थ होता है गंगा उतरी अर्थात गंगा नीचे उतर आई इसलिये यह शहर का नाम गंगोत्री पड़ा।गंगा ने जाह्नु मुनि के आश्रम को पानी में डुबा दिया। मुनि क्रोध में पूरी गंगा को ही पी गये पर भागीरथ के आग्रह पर उन्होंने अपने कान से गंगा को बाहर निकाल दिया। इसलिये ही गंगा को जाह्नवी भी कहा जाता है। मंदाकिनी, सुरसरि, देवापगा, भागीरथी, विष्णुपदी, हरिपदी आदि गंगा के अनेक नाम है। वाल्मीकि ने गंगा को त्रिपथगा कहा है।बर्फीली नदी गंगोत्री के मुहाने पर, शिवलिंग चोटी के आधार स्थल पर गंगा पृथ्वी पर उतरी जहां से उसने 2,480 किलोमीटर गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक की यात्रा शुरू की। इस विल नदी के उद्गम स्थल पर इसका नाम भागीरथी है जो उस महान तपस्वी भागीरथ के नाम पर है जिन के आग्रह पर गंगा स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर आयी। 

गंगोत्री होटल की वालकनी
गंगोत्री होटल की वालकनी
गंगा हिमालय-पुत्री है। कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा है। गंगा का उल्लेख ऋग्वेद, शतपथ ब्राšाण, तैत्तिरीय आरण्यक, जैमिनीय ब्राšाण, बृहन्नारदीय पुराण, स्कन्द पुराण, विष्णु पुराण, वाराह पुराण में है।भगीरथ अपने तप से गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारने में सफल हुए। वही तप:स्थली गंगोत्री नामक तीर्थ है। गंगा-तट पर उपजे मूल्य करुणा, मानवता से अनुप्राणित रहे। साहित्य में गंगा को मुक्तिप्रदायिनी, संजीवनी रूपा, वरदायिनी जगन्माता, विष्णुस्वरूपा, ब्रšारूपिणी, शिवस्वरूपा, शांति संतानकारिणी कहा गया है।
गंगा स्नान 

गंगा स्नान की तैयारी 


स्नान के बाद गंगा पूजा 


पूजा के बाद आरती 
देवभूमि से उद्भूत गंगा के पृथ्वी अवतरण का उल्लेख मानस में है- गाधिसूनु सब कथा सुनाई। जेहि प्रकार सुरसरि महि आई॥ जेहि पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई। बाणभट्ट, सूर, रसखान, जगन्नाथ, कवि रहीम और हरिऔध गंगा का गान करके नहीं अघाते।संत तुलसी लिखते है- 'दरस परस अरु मज्जान पाना। हरइ पाप कह वेद पुराना।' आयुर्वेद की सूक्ति है- 'गंगा जल औषधि है। नारायण हरि वैद्य है।'
गंगोत्री मंदिर 
देव भूमि में अनेक काशी व प्रयाग बिराजमान हैं.गुप्त काशी ,उत्तर काशी जिसे सौम्य काशी भी कहते हैं,उल्लेखनीय है.इसी प्रकार पञ्च प्रयाग के दर्शन होते जहां बिभिन्न मार्गो व नामों से गंगा का का संगम होता है.इस देव भूमि में गंगा अपने बिभिन्न नामों से अपने पवित्र जल से क्षेत्र को अभिसिंचित करती है.
१-देव प्रयाग -अलक नंदा औरभागीरथी जी का संगम
२-रूद्र प्रयाग- मंदाकिनी और अलक नंदा जी का संगम
३-सोंन प्रयाग-गंगा और मंदाकिनी जी का संगम
४-केशव प्रयाग-सरस्वती और अलकनंदा जी का संगम
५-विष्णु प्रयाग- अलक नंदा और शौली गंगा जी का संगम

गंगोत्री मंदिर 

गंगोत्री मंदिर के बाहर की भब्य मूर्ति 


केदारनाथ के
गंगोत्री से 
मार्ग में श्रीनगर में होटल श्री यंत्र टापू की बालकनी  व गंगा की कल-कल की सुमधुर आवाज 

श्रीनगर में होटल श्री यंत्र टापू की बालकनी  व गंगा की कल-कल की सुमधुर आवाज
केदारनाथ के लिए प्रस्थान 


केदारनाथ के मार्ग में गुप्त काशी 

केदारनाथ के मार्ग में

केदारनाथ के मार्ग में
शिव पुराण में लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात पाण्डवों को इस बात का प्रायश्चित हो रहा था कि उनके हाथों उनके अपने भाई-बंधुओं की हत्या हुई है. वे इस पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसका समाधान जब इन्होंने वेद व्यास जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि बंधुओं की हत्या का पाप तभी मिट सकता है जब शिव इस पाप से मुक्ति प्रदान करेंगे. शिव पाण्डवों से अप्रसन्न थे अत: पाण्डव जब विश्वानाथ के दर्शन के लिए काशी पहुंचे तब वे वहां शंकर प्रत्यक्ष प्रकट नहीं हुए. शिव को ढ़ूढते हुए तब पांचों पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये. 
पाण्डवों को आया देखकर शिव ने भैंस का रूप धारण कर लिया और भैस के झुण्ड में शामिल हो गये . शिव की पहचान करने के लिए भीम एक गुफा के मुख के पास पैर फैलाकर खड़ा हो गया. सभी भैस उनके पैर के बीच से होकर निकलने लगे लेकिन भैस बने शिव ने पैर के बीच से जाना स्वीकार नहीं किया इससे पाण्डवों ने शिव को पहचान लिया.
इसके बाद शिव वहां भूमि में विलीन होने लगे तब भैंस बने भगवान शंकर को भीम ने पीठ की तरह से पकड़ लिया. भगवान शंकर पाण्डवों की भक्ति एवं दृढ़ निश्चय को देखकर प्रकट हुए तथा उन्हें पापों से मुक्त कर दिया. इस स्थान पर आज भी द्रौपदी के साथ पांचों पाण्डवों की पूजा होती है. यहां शिव की पूजा भैस के पृष्ठ भाग के रूप में तभी से चली आ रही है. 

 केदारनाथ मंदिर का निर्माण पाण्डवों ने करवाया था. लेकिन, वह मंदिर नष्ट हो गया है. वर्तमान मंदिर के विषय में मान्यता है कि इसका निर्माण 8 वी सदी में आदि गुरू शंकराचार्य ने करवाया था. यह कत्यूरी शैली में निर्मित है. मंदिर लगभग 6फुट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है. मण्डप और गर्भगृह के चारों तरफ प्रदक्षिणा पथ बना हुआ है जहां से भक्त शिव की प्रदक्षिणा करते हैं. 
मंदिर के गर्भ गृह में नुकीली चट्टान की पूजा शिव के रूप में होती है. सामने की तरफ से भक्तगण शिव को जल एवं पुष्प चढ़ाते हैं. दूसरी तरफ से घृत अर्पित करके भक्त शिव से बॉह भरकर मिलते हैं.  मंदिर का पट भक्तों के लिए 7 बजे सुबह खुल जाता है. दोपहर एक बजे से दो बजे तक यहां विशेष पूजा होती है. इसके बाद मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है. शाम में 5 बजे पुन: मंदिर का पट खुलता है. 7.30 बजे के आस-पास शिव का श्रृंगार करके उनकी आरती की जाती है. इसके बाद मंदिर का पट सुबह तक के लिए बंद कर दिया जाता है. मंदिर के पास ही कई कुण्ड हैं.

शिव पुराण में वर्णित है कि नर और नारयण नाम के दो भाईयों ने भगवान शिव की पार्थिव मूर्ति बनाकर उनकी पूजा एवं ध्यान में लगे रहते. इन दोनों भाईयों की भक्तिपूर्ण तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव इनके समक्ष प्रकट हुए. भगवान शिव ने इनसे वरदान मांगने के लिए कहा तो जन कल्याण कि भावना से इन्होंने शिव से वरदान मांगा कि वह इस क्षेत्र में जनकल्याण हेतु सदा वर्तमान रहें. इनकी प्रार्थना पर भगवान शंकर ज्योर्तिलिंग के रूप में केदार क्षेत्र में प्रकट हुए. नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ भारत के उत्तराखंड में हिमालय पहार पर मंदाकिनी नदी के पास केदारनाथ ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए. बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है. केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी हुआ. यह तीर्थ शिव का अत्यंत प्रिय स्थान है. जिस प्रकार कैलाश का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है. 
स्कन्द पुराण में लिखा है कि एक बार केदार क्षेत्र के विषय में जब पार्वती जी ने शिव से पूछा तब भगवान शिव ने उन्हें बताया कि केदार क्षेत्र उन्हें अत्यंत प्रिय है. वे यहां सदा अपने गणों के साथ निवास करते हैं. इस क्षेत्र में वे तब से रहते हैं जब उन्होंने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा का रूप धारण किया था.
स्कन्द पुराण में इस स्थान की महिमा का एक वर्णन यह भी मिलता है कि एक बहेलिया था जिस हिरण का मांस खाना अत्यंत प्रिय था. एक बार यह शिकार की तलाश में केदार क्षेत्र में आया. पूरे दिन भटकने के बाद भी उसे शिकार नहीं मिला. संध्या के समय नारद मुनि इस क्षेत्र में आये तो दूर से बहेलिया उन्हें हिरण समझकर उन पर वाण चलाने के लिए तैयार हुआ. 
जब तक वह वाण चलाता सूर्य पूरी तरह डूब गया. अंधेरा होने पर उसने देखा कि एक सर्प मेंढ़क का निगल रहा है. मृत होने के बाद मेढ़क शिव रूप में परिवर्तित हो गया. इसी प्रकार बहेलिया ने देखा कि एक हिरण को सिंह मार रहा है. मृत हिरण शिव गणों के साथ शिवलोक जा रहा है. इस अद्भुत दृश्य को देखकर बहेलिया हैरान था. इसी समय नारद मुनि ब्राह्मण वेष में बहेलिया के समक्ष उपस्थित हुए. 
बहेलिया ने नारद मुनि से इन अद्भुत दृश्यों के विषय में पूछा. नारद मुनि ने उसे समझाया कि यह अत्यंत पवित्र क्षेत्र है. इस स्थान पर मृत होने पर पशु-पक्षियों को भी मुक्ति मिल जाती है. इसके बाद बहेलिया को अपने पाप कर्मों का स्मरण हो आया कि किस प्रकार उसने पशु-पक्षियों की हत्या की है. बहेलिया ने नारद मुनि से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा. नारद मुनि से शिव का ज्ञान प्राप्त करके बहेलिया केदार क्षेत्र में रहकर शिव उपासना में लीन हो गया. मृत्यु पश्चात उसे शिव लोक में स्थान प्राप्त हुआ. 


केदारनाथ के मार्ग में

केदारनाथ के मार्ग में हेलीकाफ्टर का इंतज़ार करते हुए 

केदारनाथ के मार्ग में गौरी कुंड में स्नान करते हुए 


केदारनाथ के मार्ग में गौरी कुंड

बद्रीनाथ की हिमाच्छादित चोटियाँ 

बद्रीनाथ की हिमाच्छादित चोटियाँ

बद्रीनाथ मार्ग में बिरही का होटल जिसमें रात्रि बिश्राम 

बद्रीनाथ धाम का दरवाजा 

बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ धाम रात्रि में 

बद्रीनाथ धाम रात्रि में 

बद्रीनाथ धाम रात्रि में 
बद्रीनाथ धाम के कपाट वर्ष में छ: माह बन्द रहते है. सामान्यत: मई माह में ये कपाट दर्शनों के लिये खुल जाते है. कपाट खुलने पर मंदिर की अखंड ज्योति के दर्शनों को विशेष कल्याणकारी कहा गया है.
पौराणिक कथा-भगवान श्री विष्णुशेषनाग पर लेटे रहते है. तथा देवी लक्ष्मी भगवान श्री विष्णु के पैर दबाती है. देवी से सदैव अपनी सेवा कराने की बात ऋषि नारद ने श्री विष्णु से बोल दी. ऋषि नारद की बाद से भगवान विष्णु को दु:ख पहुंचा. और वे क्षीरसागर को छोड कर हिमालय के वनों में चले गयें. वहां वे बैर खाकर तपस्या करते रहे हे.
देवी लक्ष्मी को उन्होने पहले ही नागकन्याओं के पास भेज दिया था. नागकन्याओं के पास से जब देवी लक्ष्मी लौटी तो, वे वहां भगवान श्री विष्णु को न पाकर परेशान हो गई़. कई जगहों पर श्री विष्णु को ढूंढने पर वे हिमालय में ढूंढने पहुंच गई. वहां देवी को भगवान श्री विष्णु बेर के वनों में तपस्या करने नजर आयें. इस पर देवी ने भगवान श्री विष्णु को बेर के  स्वामी के नाम से संम्बोधित किया. तभी से इस धाम का नाम बद्रीनाथ पडा है.   
. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है. भारत के प्रसिद्ध चार धामों में द्वारिका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर व बदरीनाथ आते है. इन चार धामों का वर्णन वेदों व पुराणौं तक में मिलता है
बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णु की पूजा होती है. इसीलिए इसे विष्णुधाम भी कहा जाता है. यह धाम हिमालय के सबसे पुराने तीर्थों में से एक है. मंदिर के मुख्य द्वार को सुन्दर चित्रकारी से सजाया गया है. मुख्य द्वार का नाम सिंहद्वार है. बद्रीनाथ मंदिर में चार भुजाओं वली काली पत्थर की बहुत छोटी मूर्तियां है. यहां भगवान श्री विष्णु पद्मासन की मुद्रा में विराजमान है. 
बद्रीनाथ धाम से संबन्धित मान्यता के अनुसार इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी. यहीं कारण है, कि इस धाम का माहात्मय सभी प्रमुख शास्त्रों में पाया गया है. इस धाम में स्थापित श्री विष्णु की मूर्ति में मस्तक पर हीरा लगा है. मूर्ति को सोने से जडे मुकुट से सजाया गया है. यहां की मुख्य मूर्ति के पास अन्य अनेक मूर्तियां है. जिनमें नारायण, उद्ववजी, कुबेर व नारदजी कि मूर्ति प्रमुख है. मंदिर के निकट ही एक कुंड है, जिसका जल सदैव गरम रहता है. 
बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है, इसीलिए इसे वैकुण्ठ की तरह माना जाता है.


बद्रीनाथ से लौटते हुए होटल तपोवन में लंच  हेतु तैयारी 


बद्रीनाथ से लौटते हुए होटल तपोवन में

बद्रीनाथ से लौटते हुए एक लंगर  में
 
बद्रीनाथ से लौटते हुए एक लंगर  में