Tuesday, December 13, 2011

दामाद

अपार प्रसन्नता होती है ,अगर अपना पुत्र अपने से योग्य ,सक्षम,यशस्वी,और तेजस्वी होता है,और इससे भी ज्यादा खुशी होती है, जब  अपना दामाद अपने से योग्य ,सक्षम,यशस्वी,और तेजस्वी मिल जाता है. कुछ दिन  पूर्व शिव पुराण देखने का सौभाग्य मिला ,प्रसंग था सती दहन का, अपनी ही बेटी की बेचैनी,लाचारी,और मछली जैसी तड़फ देखकर मन भर आया.बार-बार सती अपने पिता को समझाती रही,लेकिन दक्ष श्राप  काल,तथा दुर्भाग्य के वशीभूत हो हठ किया और दुर्गति  को प्राप्त हुआ.सचमुच बेटी,बहू के के भाग्य में केवल समझाना लिखा है और जाहिर है यह समझाना तभी शुरू होता है जब कोई   नहीं समझ रहा होता है तथा अपनी भूमिका में पुरूष चाहे पिता,पति,भाई इत्यादि कुछ भी हो उसे नहीं समझना है और यही प्रक्रिया बेटी के ताजिंदगी दुहराई जाती है