Saturday, October 12, 2013

अमरकंटक


अमरकंटक मध्य-प्रदेश के अनूपनगर जिला में स्थित है.नर्मदा का उद्गम स्थल और पर्यटन का एक रमणीय स्थान है. यहाँ का सबसे समीप का रेलवे स्टेशन पेण्ड्रा रोड 30 कि०मी० है. रोड से भी अच्छी तरह पहुंचा जा सकता है.




 नर्मदा उद्गम परिसर में अनेक मंदिर हैं.


परिसर में स्थित कुंड के पानी से केवल आचमन किया जा सकता है,स्नान करने की अनुमति नहीं है.





मुख्य प्रवेश द्वार के दाहिने नर्मदा उद्गम परिसर है,और बाएं एक बड़ा कुंड है जिसमें स्नान किया जा सकता है. परिसर बिस्तृत व खुला है.

माँ नर्मदा शिव के स्वेद (पसीना) से पैदा हुयी हैं तथा शिव पार्वती को बहुत प्रिय हैं. नर्मदा के हर कंकर को शंकर कहा जाता है. जितने भी शिव लिंग हैं,नर्मदा के पत्थरो से बने हैं.यहाँ पाए जाने वाले शिव लिंग में प्राण प्रतिष्ठा कराने की आवश्यकता नहीं होती. शंकर स्वयं उसमें बिराजमान हैं.
पुराणों के अनुसार जहां करोड़ों शिवलिंग बृत्ताकार रूप में स्थित हो,उसे महारूद्र मेरू यंत्र कहा जाता है.अमरकंटक पर्वत के चारों ओर अदृश्य करोड़ों शिव लिंग हैं. महारूद्र मेरू यंत्र पर साक्षात कैलाशपति शंकर निवास करते है.यह केवल वाराणसी और अमरकंटक में है. नर्मदा ही एक ऐसी पावन नदी है जिसके परिक्रमा का बहुत पूण्य होता है.यह परिक्रमा पैदल 3 से  4 साल में पूरा होती है,और मोटर मार्ग से लगभग 3 सप्ताह में की जा सकती है.
नर्मदा के तट पर तपस्या करने का प्राविधान है. नदियों में स्नान करने से पाप नाश होते हैं,लेकिन माँ नर्मदा के केवल दर्शन भर कर लेने से सभी पाप नाश हो जाते हैं. नर्मदा में अंतिम क्रिया-कर्म व शव दाह के बाद किसी नदी में मोक्ष हेतु राख इत्यादि विसर्जन की जरूरत नहीं होती ,क्योकि सभी नदियाँ,तीर्थ और देवता साल में एक बार माँ नर्मदा से मिलने अवश्य आते है. इस प्रकार माँ नर्मदा लोक-परलोक दोनों को बनाती है, ज्ञान ,तप-बल और मोक्ष देने वाली हैं.

 



नर्मदा उद्गम परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर प्राचीन मंदिर समूह परिसर है. इन मंदिरों की स्थापना कलचुरी महाराज कर्ण (1042-1072 ई०) के कार्यकाल में हुई. कर्ण मंदिर, मच्छेन्द्रनाथ मंदिर,पातालेश्वर मंदिर, केशव नारायण मंदिर इत्यादि हैं . मंदिर अच्छी तरह संरक्षित हैं.

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