Wednesday, April 6, 2011

महाबलीपुरम

महाबलीपुरम मे पल्लव राजा राजसिम्हा (अत्यन्तकमा इत्यादि राजाओं के निर्माण किये गए  प्रख्यात मंदिरों   को देखा |  महाबलीपुरम पल्लव की स्मारकीय वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध  है  |         चेन्नई  व पांडिचेरी जाने वाले अक्सर  महाबलीपुरम (मामल्लापुरम) जाते हैं क्योंकि यह  प्रख्यात विश्व धरोहर है. पांडिचेरी विश्वविद्यालय  में बेटी का टीचर हेतु इंटरब्यू था  







 गंगा अवतरण, कृष्ण मंडप, पंचरथ के नाम से प्रख्यात मंदिरों व लेटे हुये विष्णु  तथा  सिंह मुख सदृश मंच दर्शनीय था  |  सदियों पहले महाबलीपुरम या शायद उस समय इसे मामल्ल पट्टनम   कहा जाता रहा होगा, एक फलता फूलता बंदरगाह था  पहाड़ी के ऊपर चट्टान पर तेल भरने के लिए जगह बनाई गई है जिसे रात को जलाया जाता था ताकि नाविक  समुद्र में भटक जायें. यह हमारा प्राचीनतम दीप स्थंभ (लाईट हाउस) है |  

Tuesday, April 5, 2011

इंदौर से पंचमढ़ी व साँची

इंदौर से पंचमढ़ी व साँची



पर्वतीय स्थल,सतपुडा पर्वत से घिरा पंचमढ़ी में पांडव गुफा,जटाशंकर गुफा ,जलप्रपात ,सूर्योदय व सूर्यास्त( प्रियदर्शिनी प्वाईंट से )और अंधी खोह देखने लायक हैं.अन्य  जगहों की तरह यहाँ भी इको-प्वाईंट है जहां आपकी आवाज गूंजती है.




Monday, April 4, 2011

महेश्वर ,ओंकारेश्वर,तथा महाकालेश्वर




ओंकारेश्वर


ओंकारेश्वर

महेश्वर ,ओंकारेश्वर,तथा महाकालेश्वर  इंदौर के नजदीक के धार्मिक प्रसिद्द स्थान हैं.होली के बाद रंगपंचमी के दिन महेश्वर गया.महारानी अहिल्याबाई का ज्यादातर प्रवास यहीं था.उनकी सादगी और धार्मिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. अपनी सत्ता ,शक्ति और आर्थिक सम्पन्नता का सुन्दरतम प्रयोग उन्होंने अपने स्थापत्य कला के निर्माण में किया. पूरे भारतवर्ष में २९ जगहों पर उन्होंने भब्य मंदिर  बनवाया. वह अद्भुत तो है ही, अभूतपूर्व भी है। महेश्वर इंदौर के नजदीक  लगभग ९० कि०मी० दूर नर्मदा के किनारे घाट, किला और छोटे-छोटे मंदिर बनारस के घाटों की याद दिलाते हैं.नर्मदा नदी में भी एक मंदिर बना है. महेश्वर जहां शंकराचार्य ने शास्त्रार्थ किया,शंकर और भारती के बीच जो हुआ, ।भारतवर्ष में चार जगहें हैंजिन्हें भारतीय जनमानस में महत्वपूर्ण स्थान हासिल है। -प्रभास क्षेत्र, जहां व्याध ने कृष्ण को बाण से वेधा। बोध गया, जहां बुद्ध को बुद्धत्व हासिल हुआ। काशी, जहां कबीर रहे और माहेश्वर  इन जगहों  पर पीपल के वृक्षों के नीचे कुछ ऐसा हुआ कि संसार हतप्रभ रह गया। वे घटनाएं अश्वत्थ यानी चार स्थानों के पीपल वृक्षों से जुड़ी हुई हैं.गीताकार ने इस संसार को ही अश्वत्थ कह दिया है, अश्वत्थ  से अश्वत्थामा याद आया,हम जानते हैं कि हनुमान, विभीषण, परशुराम आदि के साथ अश्वत्थामा उन आठ लोगों में शामिल है, जिसे अमरता का वरदान प्राप्त है, लेकिन अन्य सात के उलट अश्वत्थामा के लिए यह वरदान मानो अभिशाप है।  माथे की मणि (चमक) खोये उस संतप्त मनुष्य की यातना  जो निरपेक्ष भाव से घटनाएं देखते रहने के सिवा कुछ कर नहीं सकता।
इसी तरह ओंकारेश्वर में भी नदी की धारा दो भागों में बिभक्त है वहाँ मंदिर बीच में बना है. दो तरफ से नदी की धारा बहती है.महेश्वर साड़ियों के लिए भी प्रसिद्द है.

होली के पर्व की कुछ पुरानी यादें

होली के पर्व की कुछ पुरानी यादें











इस वर्ष होली में  इंदौर था.वहाँ भी होली व रंग रंग पंचमी तक चलता है.हमलोग तो रंग नहीं खेल सके क्योंकि मेरे दामाद के छोटे भाई की पत्नी का देहांत थोड़ा पहले हो गया था. यहाँ रंग पंचमी के दिन गेर निकलती है,तथा स्थानीय अवकाश में सभी दफ्तर बंद रहते हैं.गेर में सभी लोग धूम-धडाका,लाऊडस्पीकर,तथा बिभिन्न देवी -देवताओं के रूप धरे रहते है. स्त्री पुरुष सामान रूप से भाग लेते है.यातायात वगैरह भी सुचारू रूप से चलते रहते हैं.