Thursday, August 18, 2011

विश्व के प्रमुख अखबारों में अन्ना के समाचार


 

अन्नागिरी

नई दिल्ली में बुधवार, 17 अगस्त को अन्ना हजारे से मिलने तिहाड़ जेल पहुंचे आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर। अन्ना का कहना है कि जब तक उन्हें बगैर प्रतिबंधों के अनशन की अनुमति नहीं दी जाती, तब तक वह जेल परिसर से बाहर नहींनिकलेंगे।
विश्व के प्रमुख अखबारों में अन्ना के समाचार
CNN
Activist's detention sparks nationwide protests...
India: Mass Support For 'Fast To The Death'
Anna Hazare's fight for change has inspired...
Indian corruption: Gandhi's mantle | Editorial
Supporters erupt in joy as Indian activist...
Anna Hazare agrees to leave jail to hold hunger...
India protests swell with fasting activist in jail
India: Mass anti-corruption protests swell...
Supporters erupt in joy as Hazare allowed to...
Aide says Indian protester agrees to 15-day fast
India activist makes release deal
India locked in standoff with anti-corruption...
Images from India’s dramatic anti-graft...
Indian activist allowed to fast
An aide to Anna Hazare says the Indian activist...
Deal Would Free Indian Activist and Allow...
Indian Protester Agrees To 15-Day Public Fast
Indian PM Hits Out at Anti-Corruption...
India's prime minister struggles to cope as...
India activist makes release deal
India anti-corruption protesters take to streets
Standoff deepens with anticorruption...
Indian anti-graft crusader agrees to 15-day fast
Mass rallies for India hunger striker
Anna Hazare's anti-corruption campaign: Hazare's...

भारत के अहिंसक आन्दोलन
1-चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह(1918)
 चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह,आंदोलन में गांधी जी को आजादी को लेकर लड़ाई  में पहली बड़ी उपलब्धि   मिली। किसानों को अपने निर्वाह के लिए जरूरी खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करनी पड़ती थी।
 दमनकारी कर
भारतीयों को नाममात्र भरपाई भत्ता दिया जाता था,जिससे वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। जमींदारों (अधिकांश अंग्रेज)की ताकत से दमन हुए । गांवों में चारों तरफ गंदगी और,अस्वास्थ्यकर माहौल,शराब,अस्पृश्यता और पर्दा प्रथा थी। उस समय आए एक विनाशकारी अकाल के बाद शाही कोष की भरपाई के लिए अंग्रेजों ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। खेड़ा (गुजरात) में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम बनाया जहां उनके बहुत सारे समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया।
नतीजा

गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को का नेतृत्व किया। जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण,राजस्व में बढ़ोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर करने को मजबूर हुए। वहीँ खेड़ा में आन्दोलन का नेतृत्व सरदार पटेल किया। उन्होंने अंग्रेजों के साथ विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया जिसमें अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया था।

2-नमक सत्याग्रह (1930)
गांधी जी हमेशा सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। 1920 की अधिकांश अवधि तक वे स्वराज पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच खाई को भरने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त वे अस्पृश्यता,शराब,अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ आंदोलन छेड़ते रहे।
गांधी जी ने मार्च 1930 में नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में सत्याग्रह चलाया। 12 मार्च 1932 को गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए 400 किलोमीटर तक का सफर अहमदाबाद से दांडी,गुजरात तक पैदल यात्रा की ताकि भारतीय स्वयं नमक बना सके।
नतीजा

इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भेजा।

3-भारत छोड़ो आन्दोलन (1942 )

नाजी जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। परिणामस्वरूप 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। आरंभ में गांधी जी ने इस युद्ध में अंग्रेजों के प्रयासों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पक्ष लिया। किंतु कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने युद्ध में जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना इसमें एकतरफा शामिल किए जाने का विरोध किया।

कांग्रेस के सभी चयनित सदस्यों ने सामूहिक तौर पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लंबी चर्चा के बाद,गांधी ने घोषणा की कि जब स्वयं भारत को आजादी से इंकार किया गया हो तब लोकतांत्रिक आजादी के लिए बाहर से लड़ने पर भारत किसी भी युद्ध के लिए पार्टी नहीं बनेगी।
गांधी जी ने आजादी के लिए अंग्रेजों पर अपनी मांग को लेकर दबाब बढ़ाना शुरू कर दिया। यह गांधी तथा कांग्रेस पार्टी का सर्वाधिक स्पष्ट विद्रोह था जो भारत से से अंग्रेजों को खदेड़ने पर केन्द्रित था ।
9 अगस्त 1942 को गांधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ों का नारा दिया। इसी दिन कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को अंग्रेजों द्वारा मुबंई में गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल में दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया।
उनके खराब स्वास्थ्‍य और जरूरी उपचार के कारण 6 मई 1944 को दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति से पूर्व ही उन्हें रिहा कर दिया गया। अंग्रेज उन्हें जेल में दम तोड़ते हुए नहीं देखना चाहते थे जिससे देश का क्रोध बढ़ जाए।

नतीजा

हालांकि भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में आशिंक सफलता ही मिली लेकिन अंगेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए को दमनकारी नीति अपनाई उसने भारतीयों को और संगठित कर दिया।

दूसरे युद्ध के अंत में,ब्रिटिश ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि संत्ता का हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथें में सोंप दिया जाएगा। इसके बाद गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया. कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग 100,100 राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।
अंततः अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा और 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया।

4-विनोबा भावे का भूदान आन्दोलन (1950-60)

विनोबा भावे ने सन 1950-60 के दशक में भूदान आन्दोलन चलाया। जिसे सफलता भी मिली। कई लोगो ने अपनी जमीने दान में दी। भूदान आन्दोलन को सफलता सबसे अधिक उन क्षेत्रों में मिली जहां पर भूमि सुधार आन्दोलन को सफलता नहीं मिल पाई थी। बिहार,ओड़िसा और आंध्र प्रदेश में इसे सबसे अधिक सफलता मिली थी।
नतीजा
विनोबा के आन्दोलन के पहले भारत में महज कुछ लोगों के पास बहुत ज्यादा ज़मीन थी और बाकी लोगों के पास नाम मात्र की ज़मीन थी या कई लोग भूमिहीन थे। इस आन्दोलन के बाद कई ज़मींदारों ने अपनी ज़मीनों में से भूमिहीनों को ज़मीन दान की। कई राज्यों ने भूमि चकबंदी कानून बनाया,जिससे बहुत हद तक भूमिहीनों की दशा में सुधार हुआ।


5-जेपी आंदोलन (1974)

जयप्रकाश नारायण (संक्षेप में जेपी) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण को 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने बिहार में अब्दुल गफूर के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ नवंबर 1974 में मुहिम छेड़ी। सबसे बड़ा और अहम मुद्दा था,बिहार में भ्रष्टाचार।
केंद्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब 1975 में आपातकाल लगाया तो पूरे देश में यह आंदोलन‘संपूर्ण क्रांति’ के तौर पर फैल गया। जेपी सहित 600 से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। जेल मे जेपी की तबीयत और भी खराब हुई। 7 महीने बाद उनको मुक्त कर दिया गया।

नतीजा

अंत में इंदिरा गांधी को झुकना पड़ा। 1977 में उन्होंने आपातकाल वापस ले लिया और आम चुनाव की घोषण कर दी। 1977 जेपी के प्रयासों से एकजुट विरोध पक्ष ने इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया।
6 -वीपी सिंह का आंदोलन (1987)

राजीव गांधी सरकार में रक्षा मंत्री विश्वनाथप्रताप सिंह ने बोफोर्स तोप सौदे में घोटाले की आशंका के चलते प्रधानमंत्री राजीव गांधी से पूछे बिना ही इसकी जांच के आदेश दे दिए। उन्हें मंत्रिमंडल से हटना पड़ा। इसके बाद उन्होंने इस सौदे के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ दिया। उनका आंदोलन देश की आवाज बन गया।

7--5 अप्रैल को अन्ना का भूख हड़ताल

सबसे पहले 1 दिसंबर 2010 को अन्ना हजारे ने स्वामी रामदेव,श्री श्री रविशंकर,किरण बेदी,स्वामी अग्निवेश,अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाने के लिए पत्र लिखा। साथ ही कहा कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह 5 अप्रैल 2011 से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर चले जाएंगे। 200 से ज्यादा लोग हजारे के साथ भूख हड़ताल पर बैठे ।
नतीजा
अन्ना के आन्दोलन से अंततः सरकार को झुकना पड़ा। सरकार अन्ना की टीम से बातचीत को तैयार हुई। दो महीने तक सरकार और अन्ना की सिविल सोसाइटी के बीच चली बैठक के बाद अन्ना टीम के जन लोक पाल और सरकारी लोकपाल विधेयक पर सहमती नहीं बन सकी।
हालांकि सरकार ने दवा किया कि उन्होंने अन्ना की 40 में से 34 शर्तों को मान लिया है। वहीँ टीम अन्ना का कहना है कि सरकार ने उनके द्वारा सुझाए 72 में से मात्र 12 सुझावों को माना है।
लिजाजा दोनों पक्षों में अभी लोकपाल बिल को लेकर गतिरोध जारी है। इसी के तहत अन्ना ने 16 अगस्त को दिल्ली के जेपी पार्क में अनशन का एलान किया। परन्तु सरकार ने उन्हें अनशन वाले दिन ही सुबह गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया।
अन्ना को सरकार ने 16 अगस्त को ही रात में रिहा कर दिया पर अन्ना अनशन की बात को लेकर अभी भी तिहाड़ से बाहर निकलने को तैयार नहीं है।

 

Tuesday, August 2, 2011

पहाडी धाम


शादी ब्याह या अन्य मांगलिक अवसरों पर आयोजित सामूहिक भोजन को हिमाचल में धाम कहते हैं। धाम का मुख्य आकर्षण है सभी मेहमानों को समान रूप से, जमीन पर बिछी पंगत पर एक साथ बैठाकर खाना खिलाना। खाना आमतौर पर पत्तल पर ही परोसा जाता है और किसी-किसी क्षेत्र में साथ में दोने भी रखे जाते हैं। दिलचस्प यह है कि खाने में चावल के साथ ही सब्जियां और दालें खाई जाती हैं, प्राय: पूरी या कचौरी नहीं परोसी जाती। दही या बूंदी भी अलग से नहीं दी जाती बल्कि सब्जियों में दही का काफी प्रयोग होता है।
माना जाता है कि पहाडी धाम कम खर्च में ज्यादा लोगों को खिलाती है। छोटे-बडे सभी जमीन पर ही साथ बैठ कर खाते हैं, इससे आपसी सद्भाव बढता है। बदलाव की महफिल में जहां हमने अपनी कितनी ही सांस्कृतिक परंपराओं को अंधेरा कोना दिखा दिया है, वहीं हिमाचली खानपान की समृद्घ परंपरा बिगडते-छूटते भी काफी हद तक बरकरार है। 
किन्नौर की दावत में शराब व मांस का होना हर उत्सव में लाजमी है। हालांकि शाकाहारी बढ रहे है पर यहां ज्यादा नहीं, इसलिए यहां बकरा कटता ही है। खाने में चावल, पूरी, हलवा, सब्जी (जो उपलब्ध हो) बनाई जाती है। लाहौल-स्पीति का माहौल ज्यादा नहीं बदला। वहां तीन बार मुख्य खाना दिया जाता है। चावल, दाल चना, राजमा, सफेद चना, गोभी आलू मटर की सब्जी और एक समय भेडू (नर भेड) का मीट कभी फ्रायड मीट या कलिचले। सादा रोटी या पूरी (भटूरे जैसी जिसके लिए रात को आटा गूंथ कर रखते हैं) खाते हैं। परोसने के लिए कांसे की थाली, शीशे या स्टील का गिलास व तरल खाद्य के लिए तीन तरह के प्याले इस्तेमाल होते हैं। नमकीन चाय, सादी चाय व सूप तीनों के लिए अलग से। सिरमौर के एक तरफ हरियाणा व साथ-साथ उत्तराखंड लगता है, इसलिए यहां के मुख्य शहरी क्षेत्रों में सिरमौर का पारंपरिक खाना सार्वजनिक उत्सवों व विवाहों में तो गायब ही रहता है, भीतरी ग्रामीण इलाकों में चावल, माह की दाल, पूडे, जलेबी, हलवा या फिर शक्कर दी जाती है। पटांडे, अस्कलियां, सिडो सिरमौर के लोकप्रिय व्यंजन हैं। लडके की शादी में बकरे का मीट भी लाजमी है।

मंडी क्षेत्र के खाने की खासियत है सेपू बडी, जो बनती है बडी मेहनत से और खाई भी बडे चाव से जाती है। यहां मीठा (मूंगदाल या कद्दू का), छोटे गुलाब जामुन, मटर पनीर, राजमा, काले चने (खट्टे), खट्टी रौंगी (लोबिया) व आलू का मदरा (दही लगा) व झोल (पकौडे रहित पतली कढी) खाया व खिलाया जाता है। कुल्लू का खाना मंडीनुमा है। यहां मीठा (बदाणा या कद्दू), आलू या कचालू (खट्टे), दाल राजमा, उडद या उडद की धुली दाल, लोबिया, सेपू बडी, लंबे पकौडों वाली कढी व आखिर में मीठे चावल खिलाए जाते हैं।
कांगडा में चने की दाल, माह (उडद साबुत), मदरा (दही चना), खट्टा (चने अमचूर), पनीर मटर, राजमा, सब्जी (जिमीकंद, कचालू, अरबी), मीठे में ज्यादातर बेसन की रेडीमेड बूंदी, बदाणा या रंगीन चावल भी परोसे जाते हैं। यहां चावल के साथ पूरी भी परोसी जाती है। हमीरपुर में दालें ज्यादा परोसी जाती हैं। वहां कहते हैं कि पैसे वाला मेजबान दालों की संख्या बढा देता है। मीठे में यहां पेठा ज्यादा पसंद किया जाता है मगर बदाणा व कद्दू का मीठा भी बनता है। राजमा या आलू का मदरा, चने का खट्टा व कढी प्रचलित है। ऊना में सामूहिक भोज को कुछ क्षेत्रों में धाम कहते हैं, कुछ में नहीं। पहले यहां नानकों, मामकों (नाना, मामा की तरफ से) की धाम होती थी। यहां पतलों के साथ दोने भी दिए जाते हैं विशेषकर शक्कर या बूरा परोसने के लिए। यहां चावल, दाल चना, राजमा, दाल माश खिलाए जाते हैं। दालें वगैरह कहीं-कहीं चावलों पर डलती है कहीं अलग से। यहां सलूणा (कढीनुमा खाद्य, इसे बलदा भी कहते हैं) खास लोकप्रिय है। यह हिमाचली इलाका कभी पंजाब से हिमाचल आया था सो यहां पंजाबी खाने-पीने का खासा असर है।
बिलासपुर क्षेत्र में उडद की धुली दाल, उडद, काले चने खट्टे, तरी वाले फ्राइ आलू या पालक में बने कचालू, रौंगी (लोबिया), मीठा बदाणा या कद्दू या घिया के मीठे का नियमित प्रचलन है। समृद्घ परिवारों ने खाने में सादे चावल की जगह बासमती, मटर पनीर व सलाद भी खिलाना शुरू किया है। सोलन के बाघल (अर्की) तक बिलासपुरी धाम का रिवाज है। उस क्षेत्र से इधर एकदम बदलाव दिखता है। हलवा-पुरी, पटांडे खूब खाए खिलाए जाते हैं। सब्जियों में आलू गोभी या मौसमी सब्जी होती है। मिक्स दाल और चावल आदि भी परोसे जाते हैं। यहां खाना धोती पहन कर भी नहीं परोसा जाता है। सोलन के साथ लगते सिरमौर क्षेत्र का स्वाद बाद में चखेंगे, पहले मंडी की हांडी में क्या पकता है यह जान लें।
हिमाचली  कहावत  है- पूरा चौका कांगडे आधा चौका कहलूर, बचा खच्या बाघला धूढ धमाल हंडूर। इसके अनुसार चौके (रसोई) की सौ प्रतिशत शुद्घता तो कांगडा में ही है। कहलूर (बिलासपुर) क्षेत्र तक आते-आते यह पचास प्रतिशत रह जाती है। बचा खुचा बाघल (सोलन) तक और हंडूर (नालागढ) क्षेत्र तक आते-आते धूल, मिट्टी में जूतों समेत बैठ कर खाना खा लिया जाता है।


बेशर्मी मोर्चा स्लट वॉक



स्लट वॉक  भारत में भी पहुँच आया.यह ग्लोबल वर्ल्ड  व नारी शक्ति का परिचायक  है  रविवार को जंतर-मंतर पर 'स्लट वाक' निकाला गया। 

इस दौरान नुक्कड़ नाटकों के जरिये लोगों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने की कोशिश की गई। 'स्लट वाक' में शामिल लोगों ने अपने कपड़ों, बांह, पेट पर नारे लिखवा रखे थे। उनके हाथों में तख्तियां भी थीं, जिन पर लिखा था, 'मेरे छोटे स्कर्ट का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है,' 'महिलाएं जो कपड़े पहनती हैं, वे यौन हिंसा को आमंत्रित नहीं करते।

दरअअसल, बेशर्मी मोर्चा भारत में शुरू हुए स्लट वॉक का हिंदी नाम है.बेशर्म मोर्चा समाज की सोच बदलने में कितना कामयाब होगा ये कहना तो बहुत मुश्किल है लेकिन इस मोर्चा की शुरुआत सबसे पहले कनाडा में टोरंटो से हुई। जहां एक पुलिस ऑफिसर के बयान से भड़की महिलाओं ने इसके खिलाफ अभियान चला दिया। दो महीने बाद ही महिलाओं ने हजारों की तादाद में जुलूस निकालने शुरू कर दिए। बयान देने वाले पुलिस अधिकारी को आखिरकार माफी मांगनी पड़ी लेकिन ये आंदोलन सारी दुनिया में फैल गया। 

पिछले कई महीनों से जिस स्लट वॉक या उसके भारतीय रूपांतरण 'बेशर्मी मोर्चा' को लेकर मुख्यधारा की मीडिया में खबरें आ रही थीं, आज उस बेशर्मी मोर्चा में शामिल युवक-युवतियों ने जंतर-मंतर पर एकत्रित होकर पार्लियामेंट स्ट्रीट का चक्कर लगाया।महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्राओं का बेशर्मी मोर्चा रविवार को सड़कों पर उतरा. दिल्ली की सड़कों पर बेशर्मी मोर्चा का स्लट वॉक रविवार को पूरी खुमारी के साथ खत्म हो गया. इस वॉक में सैकड़ों महिलाओं ने हिस्सा लिया. सड़क पर हुई इस सेंसर वॉक का नाम देल्ही स्लट वॉक 2011 दिया गया. इसके मद्देनज़र सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थेमहिलाओं के प्रति पुरुषों की मानसिकता में बदलाव लाने के मक़सद से दिल्ली में 'स्लट वॉक' यानि बेशर्मी मोर्चा निकाला गया.

जंतर-मंतर पर दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा उमंग सबरवाल के आह्वान पर स्लट वॉक यानी बेशर्मी मोर्चा निकाला गया। इसका मकसद महिलाओं के प्रति पुरुषों को संवेदनशील बनाना, और उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करना सिखाना है। इसमें देशी-विदेशी युवतियों के साथ युवकों ने भी हिस्सा लिया। बेशर्मी मोर्चा की लड़कियों ने कहा कि कपड़े भड़काऊ नहीं होते, सोच बदलो। 


महिलाओं से छेड़छाड़ की बढ़ती वारदातों, बलात्कार, यौन शोषण और छिटाकशी की घटनाओं को रोकने के लिये दिल्ली में पहली बार स्लट वॉक यानी कि बेशर्मी मोर्चा निकाला गया। यह मोर्चा उस आजादी को हासिल करने के लिये निकाला गया जो महिलाओं को पहनने-ओढ़ने पर रोक लगाता है। यह मोर्चा पुरुषों के उस संकीर्ण मानसिकता के खिलाफ निकाला गया जो महिलाओं को उनके ही खिलाफ हो रहे अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराता है।




 'स्लट वॉक' की शुरुआत कनाडा से हुई, जहां टोरंटो में महिलाओं पर एक पुलिसकर्मी की टिप्पणी पर बवाल खड़ा हो गया था. दरअसल उस पुलिसकर्मी ने कहा कि छेड़खानी से बचने के लिए महिलाओं को स्लट यानि वेश्याओं की तरह कपड़े नहीं पहनने चाहिए. इसी टिप्पणी के बाद 'स्लट वॉक' की शुरुआत हुई और कई देशों में इसकी लहर दौड़ गई



बेशर्मी मोर्चा को दिल्ली पुलिस ने कुछ शर्तों के साथ स्लट वॉक की इजाजत दे दी है. लेकिन इसके साथ उनको यह हिदायत भी दी गयी है कि वे अपनी सीमा में रहकर ही मार्च करे. मार्च के दौरान अश्लीलता के दायरे में आने वाले कपड़ो या हरकतों पर बेशर्मी मोर्चा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है महिलाओं के हक और समान अधिकार के लिए दुनिया के कई देशों में निकाली जा चुकी स्लट वॉक आज दिल्ली के जंतर-मंतर में आयोजित हुआ।