Monday, July 25, 2011

केरल का गुरुवायूर मंदिर व श्री पद्मनाभं मंदिर

केरल का गुरुवायूर मंदिर व श्री पद्मनाभं मंदिर 
गुरुवायूर मंदिर
  श्री पद्मनाभं मंदिर
श्री पद्मनाभं मंदिर त्रिवेन्द्रम में  कोई कोट, पैंट पहनकर नहीं जाया जा सकता है और महिलायें सलवार, कुर्ता पहनकर नहीं जा सकती हैं। इसे देखने जाने के लिए आपको ऊपर के कपड़े उतारने पड़ेगें  और एक धोती पहनकर जाना होगा। महिलायें सलवार, कुर्ता के ऊपर धोती पहन सकती है।
           मन्दिर, अन्दर से बहुत भव्य है।इसमें, भगवान विष्णु की, शेषनाग की शैय्या पर लेटे हुए मूर्ति है। इस मूर्ति को  एक बार में नहीं देखा जा सकता है। इसके लिऐ कई दरवाजे हैं।
 एक जमाने में केरल के समाज में जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता समाज में गहरे तक धंसा था। स्वामी विवेकानंद ने केरल के समाज में भेदभाव की उस स्थिति पर गहरी चिंता जताई थी और महात्मा गांधी ने भी केरल के मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए सत्याग्रह चलाए थे। केरल के प्रसिद्ध गुरुवायूर मंदिर(केरल की सांस्कृतिक राजधानी थ्रिस्सूर (त्रिचूर)  से २९ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में एक नगर है ‘गुरुवायूर’ जिसे दक्षिण का द्वारका भी कहा जाता है) में भी दलितों और गैर-हिंदुओं के प्रवेश को लेकर लंबे समय तक जनआंदोलन चला था, लेकिन तमाम आंदलनों और समाज में शिक्षा के प्रचार प्रसार ने भी इस सामजिक बुराई को कम किया हो ऐसा प्रतीत नहीं होता है। सूबे के रजिस्ट्री विभाग में इंसपेक्टर जनरल के पद पर काम करने वाले एके रामकृष्णन जब पिछले 31 मार्च को सेवानिवृत्त हुए तो उस दिन उनकी विदाई के बाद उनके ही दफ्तर में काम करने वाले कुछ लोगों ने उनकी कार को पहले पानी से धोया और फिर मंत्रोच्चार के बीच सार्वजनिक रूप से कार का शुद्धीकरण किया गया। बात इतने पर ही नहीं रुकी अगले दिन तो रजिस्ट्रार के दफ्तर के लोगों ने और आगे बढ़कर रामकृष्णन के बैठनेवाले कमरे और उनकी कुर्सी को भी पवित्र पानी में गाय के गोबर को घोलकर उससे साफ किया। पानी में गाय के गोबर को मिलाकर शुद्धीकरण करने की केरल में पुरानी मान्यता है।  उस कांग्रेस पार्टी के नेताओं को भी यह मुद्दा नहीं लगा जिसके केरल के ही नेता और अब केंद्र में मंत्री वायलार रवि के बेटे के विवाह के बाद गुरुवायूर मंदिर को शुद्ध किया गया था। राज्य मानवाधिकार आयोग ने सरकार के राजस्व विभाग से पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है।

दर्शन के लिए तैयारी 

दर्शन के लिए जाते हुए लोग


M.N. Krishnan (centre), a former Kerala High Court judge, who heads the seven-member committee appointed by the Supreme Court for taking the inventory of the contents of the vaults in the temple, arriving for the seventh day's stocktaking on July 4.

UTHRADAM THIRUNAL MARTHANDA Varma, the present head of the royal family of Travancore, escorting the deities for the Aarat फेस्टिवल-केरल राज्य तीन राज्यों को मिलाकर बना  है। इसकी स्थापना १९५६ में हुई थी। त्रिवेन्द्रम पहले त्रावणकोर राज्य (Travancore State) में था। यहाँ पर राजा का लड़का तो नहीं, पर उस  की बहन का लड़का राजा बनता था।
ट्रावनकोर राज्य मातृ प्रधान राज्य था। यदि परिवार में लड़की नहीं है तो लड़की गोद ले ली जाती थी।’
         शिलॉग में पुरूष अपनी पत्नी का सर नाम रख लेतें हैं और उसी के घर रहने चले जाते  हैं।
केरल में पुरुष शादी के बाद महिलाओं का सर नेम तो नहीं रखते पर अधिकतर पति, पत्नियों के साथ उनके घर में रहते हैं और यह गलत नहीं समझा जाता है।
AN AERIEL VIEW of the temple. The temple overlooks the city's main market, jewellery malls and city bus terminus in the east, and is surrounded by narrow streets crammed with residential buildings, supermarkets, shops, offices, wedding halls and smaller temples on all the other sides.


THE TRADITIONAL 'LAKSHADEEPAM', or one lakh lights, at the temple. Ancient literature has it that the temple had become a well-known pilgrimage centre by the 11th century, and it is said to have found mention in many ancient texts, epics and puranas.

पास का तालाब जिसमें मछलियों को लोग दाना खिलाते  हैं

यहाँ मछलियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता 
त्रिवेन्द्रम के समुद्र तट भी बहुत मनोहारी हैं 







   कुछ  फोटो  Frontline से साभार

Monday, July 18, 2011

हमारी शिवी


क्या आप सोच सकते हैं एक दो साल की बच्ची अपनी नानी की साड़ी पसंद कर सकती है?
   हाँ यह बिलकुल सच है कि हमारी शिवी मात्र दो साल दो माह की नन्ही सी उम्र में मेरे लिए साड़ी पसंद कर अपने दो छोटे-छोटे हांथों में उठाकर चलने लगी  ।



                              हुआ यूँ कि हमारी बेटी शिवी की दादी के के लिए कुछ साड़ियाँ खरीदने गयी  ।उसने कई साड़ियाँ पसंद कर लियाऔर लेकर चलने लगी ।
.बीच में उसने देखा कि  शिवी एक साड़ी अपनी बाहों के बीच दबा कर बैठी है ।उसकी  मां  के कहा ,शिवी अंकल को साड़ी लौटा दो तो उसने तपाक से कहा ,नहीं नानी की है! और हमारी बेटी ने उस साड़ी का मूल्य देकर घर ले आई।


        हमारी बेटी ने जब बताया कि शिवी आपके लिए साड़ी ली  है  तो मैं समझ नहीं पाई  कि शिवी ऐसे कैसे हमारे लिए साड़ी लाई है । जब उसने सारी बात बताई और शिवी से कहा की जाओ, नानी की साड़ी ला दो तो उसने झट से वही साड़ी लाई  जो उसने उठाया था।

  आश्चर्य यह कि उन पांच साड़ियों में से शिवी ने वही साड़ी उठाया जो उसने दूकान में उठाया था ।
   आज भी वह साड़ी मेरे पास सुरक्षित है शिवी जब बड़ी होगी तो मैं वह साड़ी पहन कर उसको दिखाऊंगी ।

जीवन का यह अत्यंत महत्व पूर्ण क्षण कभी न भुला देने वाला है ।




    यह सत्य घटना है ,जो मेरे साथ हुई अत्यंत रोमांचकारी थी कोई इतना छोटा बच्चा अपने परिवार के प्रति इतना सोच सकता है??यह तो मनोबैज्ञानिक ही बता सकता है

Monday, July 4, 2011

मूड


फिराक गोरखपुरी की एक पंक्ति है- ‘मुद्दतों सोचना और मुख्तसर बोलना।’
चुप-चुप रहना 
दर्द का कहना चीख उठो,दिल का तकाजा वजअ( स्वाभिमान) निभाओ
सब कुछ सहना चुप-चुप रहना काम है इज्जतदारों का   -इब्ने-इंशा 
खरीदते तो खरीदार खुद ही बिक जाते
तपे हुए खरे सोने का भाव ऐसा था -कृष्ण बिहारी नूर 
तुम मसर्रत (खुशी)का कहो या इसे गम का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता
कैफ़ी आजमी 


फजां में आयतें महन्कीहुई है
कहीं बच्चे तिलावत कर रहे हैं -बशीर बद्र 
सुना है बोले तो बातों से फूल झरते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं-अहमद फराज  

 चंद   लम्हों को ही बनाती है मुसव्विर (चित्रकार)आँखें
जिन्दगी रोज तो तसवीर बनाने से रही-निदा फाजली  

 दुनियाँ की सारी अच्छी तस्वीरों में
इक चेहरा जाना पहचाना होता है-नोमान शौक

मुद्दतें गुज़रीं तेरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं-फ़िराक़

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें-
फ़िराक़

घर से मस्जिद है बहुत दूर ,चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए -निदा फाजली

गुजरो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल ओ डाली हरी रहे-निदा फाजली 




जमीन भींगी हुई है आंसुओं से
यहाँ बादल इबादत कर रहें हैं-बशीर बद्र 


तमाम घर की फजा को बदलता रहता है
वो इक खिलौना जो आँगन में चलता रहता है-अजहर इनायती 



मेरी आँखों में हँसे आ के गुले-तर (सुन्दर पुष्प)कोई
तू जो पानी की तरह खुद पे उछाले मुझकों-आचार्य सारथी रूमी 

काश!!रूमी मैं देखता जाऊं
लम्हा-लम्हा निखार फूलों का 
इन दुआ माँगते बच्चों को दुआ दी मैंने
इनके सुख पे न दुखों की कोई दीवार गिरे -आचार्य सारथी रूमी

अक्से-खुशबू हूँ,बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊं तो मुझको न समेटे कोई -परवीन शाकिर 

कोई आहट,कोई आवाज,कोई चाप नहीं
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान हैं,आये कोई -परवीन शाकिर