Monday, July 4, 2011

मूड


फिराक गोरखपुरी की एक पंक्ति है- ‘मुद्दतों सोचना और मुख्तसर बोलना।’
चुप-चुप रहना 
दर्द का कहना चीख उठो,दिल का तकाजा वजअ( स्वाभिमान) निभाओ
सब कुछ सहना चुप-चुप रहना काम है इज्जतदारों का   -इब्ने-इंशा 
खरीदते तो खरीदार खुद ही बिक जाते
तपे हुए खरे सोने का भाव ऐसा था -कृष्ण बिहारी नूर 
तुम मसर्रत (खुशी)का कहो या इसे गम का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता
कैफ़ी आजमी 


फजां में आयतें महन्कीहुई है
कहीं बच्चे तिलावत कर रहे हैं -बशीर बद्र 
सुना है बोले तो बातों से फूल झरते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं-अहमद फराज  

 चंद   लम्हों को ही बनाती है मुसव्विर (चित्रकार)आँखें
जिन्दगी रोज तो तसवीर बनाने से रही-निदा फाजली  

 दुनियाँ की सारी अच्छी तस्वीरों में
इक चेहरा जाना पहचाना होता है-नोमान शौक

मुद्दतें गुज़रीं तेरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं-फ़िराक़

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो
तुम को देखें कि तुम से बात करें-
फ़िराक़

घर से मस्जिद है बहुत दूर ,चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए -निदा फाजली

गुजरो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल ओ डाली हरी रहे-निदा फाजली 




जमीन भींगी हुई है आंसुओं से
यहाँ बादल इबादत कर रहें हैं-बशीर बद्र 


तमाम घर की फजा को बदलता रहता है
वो इक खिलौना जो आँगन में चलता रहता है-अजहर इनायती 



मेरी आँखों में हँसे आ के गुले-तर (सुन्दर पुष्प)कोई
तू जो पानी की तरह खुद पे उछाले मुझकों-आचार्य सारथी रूमी 

काश!!रूमी मैं देखता जाऊं
लम्हा-लम्हा निखार फूलों का 
इन दुआ माँगते बच्चों को दुआ दी मैंने
इनके सुख पे न दुखों की कोई दीवार गिरे -आचार्य सारथी रूमी

अक्से-खुशबू हूँ,बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊं तो मुझको न समेटे कोई -परवीन शाकिर 

कोई आहट,कोई आवाज,कोई चाप नहीं
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान हैं,आये कोई -परवीन शाकिर 

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