अक्षय तृतीया परशुराम जयन्ती और चार धाम यात्रा की याद दिलाती है.यमुनोत्री,गंगोत्री,केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट भी इसी दिन खुल जाते है और बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन में चरण विग्रह के दर्शन वर्ष में एक बार आज के दिन ही होते हैं।इसी दिन स्वर्गलोक से गंगा भू-लोक में अवतरित हुई थीं, अत: इस दिन गंगा में स्नान करना विशेष पुण्यदायक माना जाता है।गणोश जी ने महाभारत लेखन की शुरुआत अक्षय तृतीया को ही की थी। आज के दिन त्रेता युग की शुरुआत होना माना जाता है
हिंदू धर्म ग्रंथों में कुछ महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें आज भी अमर माना जाता है। अक्षय तृतीया के पुण्य दिवस पर ही भगवान परशुराम अवतरित हुए है परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। ..भगवान परशुराम के पिता भृगुवंशी ऋषि जमदग्नि और माता राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं. ऋषि जमदग्नि बहुत तपस्वी और ओजस्वी थे. ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पांच पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्ववानस और परशुराम हुए. एक बार रेणुका स्नान के लिए नदी किनारे गईं. संयोग से वहीं पर राजा चित्ररथ भी स्नान करने आया था, राजा चित्ररथ सुंदर और आकर्षक था. राजा को देखकर रेणुका भी आसक्त हो गईं. किंतु ऋषि जमदग्नि ने अपने योगबल से अपनी पत्नी के इस आचरण को जान लिया. उन्होंने आवेशित होकर अपने पुत्रों को अपनी मां का सिर काटने का आदेश दिया. किंतु परशुराम को छोड़कर सभी पुत्रों ने मां के स्नेह के बंधकर वध करने से इंकार कर दिया, लेकिन परशुराम ने पिता के आदेश पर अपनी मां का सिर काटकर अलग कर दिया.
क्रोधित ऋषि जमदग्नि ने आज्ञा का पालन न करने पर परशुराम को छोड़कर सभी पुत्रों को चेतनाशून्य हो जाने का शाप दे दिया. वहीं परशुराम को खुश होकर वर मांगने को कहा. तब परशुराम ने पूर्ण बुद्धिमत्ता के साथ वर मांगा. जिसमें उन्होंने तीन वरदान मांगे – पहला, अपनी माता को फिर से जीवन देने और माता को मृत्यु की पूरी घटना याद न रहने का वर मांगा. दूसरा, अपने चारों चेतनाशून्य भाइयों की चेतना फिर से लौटाने का वरदान मांगा. तीसरा वरदान स्वयं के लिए मांगा जिसके अनुसार उनकी किसी भी शत्रु से या युद्ध में पराजय न हो और उनको लंबी आयु प्राप्त हो. उन्होंने पिता से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और पिता के सामने धनुर्विद्या सीखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि जमदग्नि ने उन्हें हिमालय पर जाकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया। उस बीच असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा। राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से ही असुरों का नाश कर दिया। राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त करते ही राम का नाम परशुराम हो गया। शिवजी ने परशुराम को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम माने जाते हैं। भगवान परशुराम के बारे में यह प्रसिद्ध है कि उन्होंने तत्कालीन अत्याचारी और निरंकुश क्षत्रियों का 21 बार संहार किया।
कार्त्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि से कामधेनु गौ की मांग की किन्तु जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु गौ को देना स्वीकार नहीं किया. इस पर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को ले जाने लगा। तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई। कार्त्तवीर्य अर्जुन को बिना कामधेनु गौ के वापस लौटना पड़ा. जब यह घटना हुई उस समय परशुराम वहां मौजूद नहीं थे. . अपने पिता के आश्रम की दुर्दशा देखकर . पराक्रमी परशुराम ने उसी वक्त दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया। परशुराम अपने परशु अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुंचे। जहां सहस्त्रार्जुन और परशुराम का युद्ध हुआ। किंतु परशुराम के प्रचण्ड बल के आगे सहस्त्रार्जुन बौना साबित हुआ। भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु से काटकर कर उसका वध कर दिया। सहस्त्रार्जुन के वध के बाद पिता के आदेश से इस वध का प्रायश्चित करने के लिए परशुराम तीर्थ यात्रा पर चले गए। इसी बीच मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने तपस्यारत ऋषि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर वध कर दिया। जब परशुराम तीर्थ से वापिस लौटे तो आश्रम में माता को विलाप करते देखा और माता के समीप ही पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे।
इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में पांच सरोवर भर दिए. अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया.
भगवान परशुराम के चरित्र का सबसे बड़ा पक्ष यह है कि उन्होंने क्षमा करने की परंपरा को एक सार्थक अर्थ दिया। ब्रह्मा के युग से माना जाता है कि ब्राह्मण को क्षमा करनी चाहिए। बहुत सारे लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो यह बताएगें कि ब्राह्मण के पास ताकत नहीं होती, इसलिए वह क्षमा करने के लिए मजबूर होता है। लेकिन भगवान परशुराम का चरित्र हमें यह बताता है कि क्षमा करने वाला ब्राह्मण मजबूर नहीं, वास्तव में अपार शक्तिशाली होता है। उन्हें क्षत्रियों के दुश्मन के रूप में प्रस्तुत करना गलत है। अगर ऐसा होता तो वे भगवान राम को पूजनीय क्यों मानते।
भगवान परशुराम जी शास्त्र एवम् शस्त्र विद्या के पूर्ण ज्ञाता हैं. परशुराम द्वारा तत्कालीन दुष्ट और अत्याचारी क्षत्रियों का अंत कर न केवल जगत को उनके आतंक से मुक्त कराया बल्कि इसके द्वारा एक लौकिक संदेश भी दे गए कि किसी भी व्यक्ति और समाज को असत्य, अन्याय और अत्याचार का निर्भय होकर, पुरुषार्थ और पराक्रम के साथ विरोध करना चाहिए। किंतु उसका उद्देश्य साथर्क होना चाहिए।प्राणी मात्र का हित ही उनका सर्वोपरि लक्ष्य होता है. भगवान शिव, परशुराम जी के गुरू हैं.
भगवान परशुराम का दिव्य चरित्र जीवन मूल्य सिखाता है। भगवान परशुराम ने जीवन में माता-पिता, परिवार, भातृ प्रेम और कर्तव्यों के प्रति सर्मपण के ऐसे ऊंचे आदर्श प्रस्तुत किए, जो आज भी व्यक्ति और समाज को अलगाव और बिखराव से बचाना सिखाता है।
पूजा के बाद इस परशुराम गायत्री मंत्र से भगवान परशुराम का स्मरण करें -
ॐ जमदग्न्याय विद्महे
महावीराय धीमहि
तन्नो परशुराम: प्रचोदयात।क्रोधित ऋषि जमदग्नि ने आज्ञा का पालन न करने पर परशुराम को छोड़कर सभी पुत्रों को चेतनाशून्य हो जाने का शाप दे दिया. वहीं परशुराम को खुश होकर वर मांगने को कहा. तब परशुराम ने पूर्ण बुद्धिमत्ता के साथ वर मांगा. जिसमें उन्होंने तीन वरदान मांगे – पहला, अपनी माता को फिर से जीवन देने और माता को मृत्यु की पूरी घटना याद न रहने का वर मांगा. दूसरा, अपने चारों चेतनाशून्य भाइयों की चेतना फिर से लौटाने का वरदान मांगा. तीसरा वरदान स्वयं के लिए मांगा जिसके अनुसार उनकी किसी भी शत्रु से या युद्ध में पराजय न हो और उनको लंबी आयु प्राप्त हो. उन्होंने पिता से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और पिता के सामने धनुर्विद्या सीखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि जमदग्नि ने उन्हें हिमालय पर जाकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया। उस बीच असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा। राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से ही असुरों का नाश कर दिया। राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त करते ही राम का नाम परशुराम हो गया। शिवजी ने परशुराम को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम माने जाते हैं। भगवान परशुराम के बारे में यह प्रसिद्ध है कि उन्होंने तत्कालीन अत्याचारी और निरंकुश क्षत्रियों का 21 बार संहार किया।
कार्त्तवीर्य अर्जुन ने जमदग्नि से कामधेनु गौ की मांग की किन्तु जमदग्नि ने उन्हें कामधेनु गौ को देना स्वीकार नहीं किया. इस पर कार्त्तवीर्य अर्जुन ने क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को ले जाने लगा। तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई। कार्त्तवीर्य अर्जुन को बिना कामधेनु गौ के वापस लौटना पड़ा. जब यह घटना हुई उस समय परशुराम वहां मौजूद नहीं थे. . अपने पिता के आश्रम की दुर्दशा देखकर . पराक्रमी परशुराम ने उसी वक्त दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया। परशुराम अपने परशु अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुंचे। जहां सहस्त्रार्जुन और परशुराम का युद्ध हुआ। किंतु परशुराम के प्रचण्ड बल के आगे सहस्त्रार्जुन बौना साबित हुआ। भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु से काटकर कर उसका वध कर दिया। सहस्त्रार्जुन के वध के बाद पिता के आदेश से इस वध का प्रायश्चित करने के लिए परशुराम तीर्थ यात्रा पर चले गए। इसी बीच मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने तपस्यारत ऋषि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर वध कर दिया। जब परशुराम तीर्थ से वापिस लौटे तो आश्रम में माता को विलाप करते देखा और माता के समीप ही पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे।
इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में पांच सरोवर भर दिए. अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोक दिया.
भगवान परशुराम के चरित्र का सबसे बड़ा पक्ष यह है कि उन्होंने क्षमा करने की परंपरा को एक सार्थक अर्थ दिया। ब्रह्मा के युग से माना जाता है कि ब्राह्मण को क्षमा करनी चाहिए। बहुत सारे लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो यह बताएगें कि ब्राह्मण के पास ताकत नहीं होती, इसलिए वह क्षमा करने के लिए मजबूर होता है। लेकिन भगवान परशुराम का चरित्र हमें यह बताता है कि क्षमा करने वाला ब्राह्मण मजबूर नहीं, वास्तव में अपार शक्तिशाली होता है। उन्हें क्षत्रियों के दुश्मन के रूप में प्रस्तुत करना गलत है। अगर ऐसा होता तो वे भगवान राम को पूजनीय क्यों मानते।
भगवान परशुराम जी शास्त्र एवम् शस्त्र विद्या के पूर्ण ज्ञाता हैं. परशुराम द्वारा तत्कालीन दुष्ट और अत्याचारी क्षत्रियों का अंत कर न केवल जगत को उनके आतंक से मुक्त कराया बल्कि इसके द्वारा एक लौकिक संदेश भी दे गए कि किसी भी व्यक्ति और समाज को असत्य, अन्याय और अत्याचार का निर्भय होकर, पुरुषार्थ और पराक्रम के साथ विरोध करना चाहिए। किंतु उसका उद्देश्य साथर्क होना चाहिए।प्राणी मात्र का हित ही उनका सर्वोपरि लक्ष्य होता है. भगवान शिव, परशुराम जी के गुरू हैं.
भगवान परशुराम का दिव्य चरित्र जीवन मूल्य सिखाता है। भगवान परशुराम ने जीवन में माता-पिता, परिवार, भातृ प्रेम और कर्तव्यों के प्रति सर्मपण के ऐसे ऊंचे आदर्श प्रस्तुत किए, जो आज भी व्यक्ति और समाज को अलगाव और बिखराव से बचाना सिखाता है।
पूजा के बाद इस परशुराम गायत्री मंत्र से भगवान परशुराम का स्मरण करें -
ॐ जमदग्न्याय विद्महे
महावीराय धीमहि
STORY HIGHLIGHTS
- Laxmi Sargara learned as a teen she had been married when she was one year old
- She found out a few days before being expected to live with her husband's family
- Teenager had marriage annulled after refusing to go with husband's family
- Child marriages are common in poorer parts of India
It was a few days before Akshaya Tritiya, an auspicious day for child marriages in India, when many parents in the poorest areas of the country promise their children to other families.
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